Tuesday, October 20, 2015

ख्वाइशें



ख्वाइशें शायद हकीकत से ज्यादा ख़ूबसूरत होती है
ख्वाइशें वह सफर है और हकीकत एक कयाम
और हम तो बस एक मुसाफिर हैं
चले जा रहे हैं , अपनी क्वहाइशों को लिए...

तुम अक्सर पूछती हो मुझसे
क्यों नहीं चले जाते वापिस अपने गांव
क्या मज़ा है इस शहर की कशमश की ज़िन्दगी में
क्या मज़ा है इस शोर में, इस गम में...

मुझे ख्याल आता है कि क्या पता ऐ दोस्त
इस शहर में है मेरी ख्वाइशें
और उन ख्वाइशों में है एक ख्वाइश,
मेरे गाँव लौट जाने की ख्वाइश
और शायद ख्वाइशें हकीकत से ज्यादा खूबसूरत होती हैं..

याद करो जब मैंने बताया था तुम्हे की
जब तीस साल का हो जाऊँगा
चला जाऊँगा हिमालय के दामन में
तुमने हंस कर बोला हो तो चुके हो तीस के
मैंने भी हंस दिया और बोला चला तो जाऊँगा हिमालय
लेकिन अब चालीस की उम्र में
जाऊं या ना जाऊं मेरे दोस्त
लेकिन मेरी तीस साल की रूह में
एक ख्वाइश है हिमालय जाने की
और शायद ख्वाइशें हकीकत से ज्यादा खूबसूरत होती हैं..
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2 comments :

GKK said...

शायर साहब को प्रणाम

Shubhendu Bhardwaj said...

यानी ख़्वाहिशों का होना और पूरा ना हो पाना हो ज़िंदगी है, कुछ कमी सी लगती है इस बात में.